अरण्यऋषि पद्मश्री मारुति चितमपल्ली का निधन: एक युग का अंत

नई दिल्ली दि.19 : भारतीय मराठी साहित्य और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक चमकता हुआ युग 18 जून 2025 को समाप्त हो गया। ‘अरण्यऋषि’, ‘पक्षीमित्र’, ‘वन्यजीव प्रेमी’ और ‘प्रकृति के साहित्यकार’ के रूप में देश-विदेश में प्रसिद्ध पद्मश्री मारुति चितमपल्ली का 93 वर्ष की आयु में बुधवार रात महाराष्ट्र के सोलापूर जिले मे निधन हो गया। उनके जाने से साहित्य, पर्यावरण और सामाजिक क्षेत्र में जो शून्यता पैदा हुई है, वह कभी भरी नहीं जा सकेगी।
चितमपल्ली जी का जन्म 12 नवंबर 1932 को सोलापुर में हुआ था। उन्होंने महाराष्ट्र वन सेवा में 36 वर्षों से अधिक समय तक सेवा दी और उप-मुख्य वन संरक्षक के पद तक पहुँचे। कर्नाळा पक्षी अभयारण्य (रायगड जिला), नवेगांव राष्ट्रीय उद्यान( गोंदिया जिला), नागझिरा अभयारण्य (भंडारा आणि गोंदिया जिला ) और मेलघाट व्याघ्र परियोजना (अमरावती जिला) के विकास में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। उनकी आत्मकथा ‘चकवा चांदण: एक वनोपनिषद’ उनके बचपन से ही प्रकृति के प्रति उनके प्रेम की झलक देती है।
13 भाषाओं पर प्रभुत्व रखने वाले चितमपल्ली जी ने अपने लेखन में वन्यजीव, आदिवासी ज्ञान और प्राकृतिक सौंदर्य को अभिव्यक्त किया।
‘वनोपनिषद’, ‘पक्षीकोष’, ‘रातवा’ और ‘आनंददायी बगळे( बगुले)’ जैसी उनकी कृतियाँ मराठी साहित्य में प्रकृति-संवेदनशीलता का दुर्लभ उदाहरण हैं। ‘रातवा’ को महाराष्ट्र शासन का साहित्य पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पक्षी विज्ञान और वन्यजीव अध्ययन में उन्होंने विशिष्ट पहचान बनाई।
2006 में हुए 83वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के वे अध्यक्ष रहे। उन्हें 2017 में विंदा करंदीकर जीवनगौरव पुरस्कार, 2018 में किर्लोस्कर फिल्म फेस्टिवल का सम्मान और इसी वर्ष 30 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त हुआ।
महाराष्ट्र राज्य निर्माण हीरक महोत्सवपर जनसंपर्क महाराष्ट्र सरकार के दिल्ली lस्थित महाराष्ट्र सूचना केंद्र द्वारा आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला में उन्होंने प्रकृति, पर्यावरण और वन्यजीवों पर आधारित दिया था.
राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने मारुति चितमपल्ली के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया।
उनका कहना था:
“चितमपल्ली सर ने प्रकृति को शब्दों में पिरोकर साहित्य की अमूल्य धरोहर रची। वन विभाग में उन्होंने अत्यंत समर्पण के साथ कार्य किया और ‘वनोपनिषद’ तथा ‘पक्षीकोष’ जैसी कृतियों के माध्यम से वे अमर हो गए। उनके निधन से अपूरणीय क्षति हुई है।” — मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस
“चितमपल्ली जी ने प्रकृति की आत्मा को पहचाना और मानव के साथ उसके रिश्ते को मजबूत किया। उनके लेखन ने वन और मानव संवेदनाओं के बीच एक सेतु खड़ा किया, जो अब उनके निधन से ढह गया है। उनके कार्य को मैं विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।” — उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
“चितमपल्ली जी केवल साहित्यकार नहीं, बल्कि पक्षीविज्ञानी, वन्यजीव विशेषज्ञ और एक तपस्वी प्रकृतिप्रेमी थे। उनके लेखन से मराठी साहित्य को प्रकृति की संवेदनशीलता का नया आयाम मिला। उनका पद्मश्री पुरस्कार उनके जीवनकार्य की सर्वोच्च मान्यता थी। उनके निधन से हमने एक सृजनशील ऋषि को खो दिया है।” — उपमुख्यमंत्री अजित पवार
मारुति चितमपल्ली का संपूर्ण जीवन प्रकृति और साहित्य की सेवा को समर्पित था। उन्होंने मानव को प्रकृति से जोड़ने का कार्य किया। उनके जाने से एक युग का अंत जरूर हुआ है, लेकिन उनके विचार, रचनाएँ और योगदान आनेवाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे। राज्य सरकार की और से उन्हे उचित सन्मान देकर उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा.