स्त्री सशक्त थी, है और रहेगी... विनीता बेदी काम्बीरी के द्वितीय काव्यसंग्रह 'ताकि सनद रहे' का विमोचन

24 June, 2025, 9:45 pm

विनीता बेदी काम्बीरी जी के द्वितीय काव्यसंग्रह 'ताकि सनद रहे' का विमोचन समारोह 14 जून 2025 को इंडियन विमेन प्रेस कॉर्प्स, 5 विंडसर प्लेस, अशोक रोड के हॉल में आयोजित किया गया। ‘ताकि सनद रहे’ का यह लोकार्पण समारोह न केवल साहित्यिक आयोजन था, बल्कि यह एक आत्मीय अवसर था — जहाँ कविता, करुणा और चेतना तीनों ने एक साथ संवाद किया।यह केवल एक काव्य संग्रह नहीं, बल्कि एक स्त्री की संवेदना, उसकी स्मृतियाँ, संघर्ष और सृजन का शब्दरूप था, जो उस दिन सबके सम्मुख खुला।


कार्यक्रम का आरंभ अत्यंत गरिमामय वातावरण में हुआ। सुप्रसिद्ध शिक्षाविद एवं संस्कृत संवर्द्धन संस्थान के निदेशक डॉ. चाँद किरण सलूजा जी की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को प्राणवत्ता दी। डॉ. जगदीश व्योम, डॉ. रमा शर्मा एवं सुश्री काजल सूरी जैसे विशिष्ट अतिथियों के विचारों से काव्य के बहुआयामी स्वरूप उद्घाटित हुए। संचालन कर रही सुश्री कृति काम्बीरी ने जिस भावप्रवणता से पूरे कार्यक्रम को समेटा, वह अत्यंत सराहनीय था। हर शब्द, हर प्रस्तुति में एक आत्मीयता झलक रही थी।


विनीता बेदी काम्बीरी ने जब अपने काव्य संग्रह के रचाव से जुड़े अनछुए पहलुओं को साझा किया, तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो किसी ने हृदय की तहों को खोलकर शब्दों की रश्मियाँ बिखेर दी हों। कविताओं की पंक्तियाँ मात्र पंक्तियाँ नहीं थीं, बल्कि जीवन की वे अनुभूतियाँ थीं जो मन को आंदोलित कर जाती हैं।
सबसे अविस्मरणीय क्षण रहा — उनकी माताजी की उपस्थिति और उनका संवाद। एक माँ की दृष्टि से बेटी के साहित्यिक अवदान को सुनना, उस आत्मीयता से भरा हुआ था जो शब्दों में समाना कठिन है। इस अवसर पर उनकी माँ श्रीमती रजनी बेदी ने स्वयं की लिखी एक भावनात्मक कविता विनीता जी को समर्पित की जिसने सभी उपस्थित अतिथियों की आँखों को सजल कर दिया।


 इस पुस्तक का प्रकाशन श्वेतांशु प्रकाशन, पांडव नगर दिल्ली द्वारा किया गया है। इसका शीर्षक 'ताकि सनद रहे' बहुत ही रोचक और आकर्षक है। इस पुस्तक का पहला खण्ड 'वह स्त्री', स्त्री जीवन के संघर्षों, संवेदनाओं, कर्तव्यों और अधिकारों का चित्रण करते हुए 'ताकि सनद रहे', 'रहूं कब तक सीता', 'माँ भी काम पर जाती है' और 'नदी तो ऐसे ही बहेगी' जैसी कविताएं स्त्री मन की काव्यात्मक यात्रा करवातीं है, तो दूसरा खण्ड 'यह शहर', शहरी जीवन की असंवेदनशीलता, झंझावतों को बख़ूबी चित्रित करतीं, 'अभिमन्यु', 'सन्नाटा', 'चुप', 'आक्रोश', 'घुटन', 'महज़ एक कागज़' आदि कविताएं हैं। अन्तिम खण्ड 'एक आस' में 'अभी भी कुछ बाकी है', 'साँची में सूर्यास्त', 'समय की धारा', 'विराम के आगे' आदि कविताएं आशा की किरण जगाती हैं। इसकी भाषा शैली साहित्यिक सुख प्रदान करती है। इसके भाव, संवेदनाएं स्त्री पुरुष संबंधों को बेबाकी से उकरती हैं जिन्हें हम सरलता से अपने चारों ओर महसूस करते हैं।


यह पुस्तक स्त्री मन को तो भायेगी  ही पुरुषों को भी आत्ममंथन को प्रेरित करेगी। 'ताकि सनद रहे' की यह सनद समाज में गूँजती रहे कि स्त्री सशक्त थी, है और रहेगी। ‘ताकि सनद रहे’ के माध्यम से जो विचार सामने आए हैं, वे समाज के हर कोने में पहुँचें — यही इस कार्यक्रम का उद्देश्य था।

विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि रूप में  डॉ चाँद किरण सलूजा, विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ जगदीश  व्योम, डॉ रमा शर्मा, सुश्री काजल सूरी एवं डॉ अरुणा गुप्ता तथा अन्य गणमान्य अतिथि डॉ प्रदीप कुमार पांडेय, डॉ नीलम वर्मा, श्री अरुण बेरी, श्री जयेंद्र अध्यारु, सुश्री पूनम सागर, श्रीमती आशा काम्बीरी, सुश्री स्मृति, सुश्री पूनम श्रीवास्तव, श्री मनीष आज़ाद, श्री कंवलजीत सिंह, सुश्री निशिलता, श्री कौस्तुभ, श्री क्षितिज मरोड़िया, श्री अश्विन राजा, श्री विवेक बेदी, श्री विक्रम बेदी, श्रीमती मंजू मल्होत्रा, सुश्री स्वाति गुप्ता, डॉ लीना व्यास, डॉ अंकित श्रीवास्तव, डॉ आलोक तिवारी, सुश्री अलका लूथरा, डॉ कल्याणी, श्री इंतज़ार अली आदि उपस्थित रहे।