सोहराय कला है भारत की आत्मा: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू

26 जुलाई 2025 | कला उत्सव 2025 के माध्यम से झारखंड की लोक परंपराएं, विशेषकर सोहराय चित्रकला, अब राष्ट्रीय ध्यानाकर्षण का केंद्र बन चुकी हैं। यह केवल एक कला नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा है – जो प्रकृति, विश्वास और सामूहिक स्मृति की रंगों में रची-बसी है।
राष्ट्रपति भवन में आयोजित कला उत्सव 2025 – आर्टिस्ट्स इन रेज़िडेंस कार्यक्रम में झारखंड की विश्वविख्यात सोहराय चित्रकला ने केंद्र में स्थान पाया। यह कार्यक्रम भारत की समृद्ध लोक एवं जनजातीय कलाओं को राष्ट्रीय मंच प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने इस अवसर पर कलाकारों से संवाद करते हुए कहा
“ये कलाकृतियाँ भारत की आत्मा हैं – यह हमारी प्रकृति से जुड़ाव, हमारी पौराणिकता और सामुदायिक जीवन का प्रतीक हैं। मैं इन पारंपरिक परंपराओं को जीवंत बनाए रखने के आपके प्रयासों की गहराई से सराहना करती हूं।”
क्या है सोहराय कला?
सोहराय झारखंड की जनजातीय महिलाओं द्वारा फसल कटाई व त्योहारों के अवसर पर दीवारों पर बनाई जाने वाली रिवाज आधारित चित्रकला है।
-
इसमें प्राकृतिक मिट्टी के रंगों और बांस की ब्रश का उपयोग होता है।
-
दीवारों पर पशु, वनस्पति और ज्यामितीय आकृतियाँ उकेरी जाती हैं जो ग्रामीण जीवन और आध्यात्मिक आस्था से जुड़ी होती हैं।
प्रमुख कलाकार और सहभागिता
झारखंड के हजारीबाग जिले से 10 प्रसिद्ध महिला कलाकारों ने इस 10 दिवसीय कार्यक्रम (14 से 24 जुलाई 2025) में भाग लिया:
रुदन देवी, अनीता देवी, सीता कुमारी, मालो देवी, सजवा देवी, पार्वती देवी, आशा देवी, कदमी देवी, मोहिनी देवी, रीना देवी।
कलाकार मालो देवी और सजवा देवी ने कहा:
“हमें इस पहल का हिस्सा बनकर बेहद ख़ुशी हुई। अपने राज्य की पारंपरिक सोहराय कला को इतने बड़े मंच पर दिखाने का अनुभव अविस्मरणीय रहा।”
IGNCA की अहम भूमिका
कार्यक्रम के आयोजन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) और उसका रांची स्थित क्षेत्रीय केंद्र बेहद सक्रिय रहा।डॉ. सच्चिदानंद जोशी (सदस्य सचिव),डॉ. कुमार संजय झा (क्षेत्रीय निदेशक),श्रीमती सुमेधा सेनगुप्ता (परियोजना सहायक),और उनकी टीम ने गांवों से कलाकारों की पहचान, समन्वय व आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।राष्ट्रपति को IGNCA की ओर से परंपरागत साड़ी भेंट कर सम्मानित भी किया गया।
झारखंड के लिए गर्व का क्षण
जहाँ मधुबनी, गोंड और वारली जैसी पारंपरिक कलाएं पहले से राष्ट्रीय पहचान रखती हैं, वहीं सोहराय कला को इस कार्यक्रम के माध्यम से अब राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है। यह झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को देश के सांस्कृतिक मानचित्र पर उभारने का कार्य कर रहा है।
कला उत्सव 2025 के माध्यम से झारखंड की लोक परंपराएं, विशेषकर सोहराय चित्रकला, अब राष्ट्रीय ध्यानाकर्षण का केंद्र बन चुकी हैं। यह केवल एक कला नहीं, बल्कि एक जीवित परंपरा है – जो प्रकृति, विश्वास और सामूहिक स्मृति की रंगों में रची-बसी है।