Ladwa: आज़ादी के 77 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित, नागरिकों ने प्रशासन से की जवाबदेही की मांग

लाडवा (हरियाणा): स्वतंत्रता के 77 वर्षों बाद भी हरियाणा का लाडवा शहर विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर खड़ा है। गड्ढों में तब्दील सड़कों, अधूरी बाईपास योजना, और खेल सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे लाडवा के नागरिकों ने अब आवाज़ बुलंद करनी शुरू कर दी है।
शहर के बुद्धिजीवियों, सामाजिक संगठनों और आम नागरिकों ने एक साझा प्रेस नोट जारी कर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से जवाबदेही की मांग की है। उनका कहना है कि नेताओं द्वारा विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिलकुल उलट है।
सड़कें जर्जर, बाईपास अधूरा
लाडवा की आंतरिक सड़कें सालों से टूटी पड़ी हैं, जिससे वाहन चालकों और पैदल यात्रियों दोनों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वहीं शहर के लिए घोषित बाईपास परियोजना सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गई है। ट्रैफिक का दबाव लगातार बढ़ रहा है, लेकिन समाधान का कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया है।
खेल मैदान का अभाव, युवाओं में नाराज़गी
लाडवा की युवा आबादी बड़ी संख्या में है, लेकिन आज तक यहां एक भी स्टेडियम या खेल परिसर नहीं बन पाया है। इससे न केवल खेल प्रतिभाओं को नुकसान हो रहा है, बल्कि युवाओं में गहरा असंतोष भी है।
बस सेवा अवैध कब्ज़े से संचालित, सुरक्षा पर सवाल
शहर की बस सेवा एक ऐसे चौराहे से संचालित होती है जो अवैध कब्ज़े में है। इसके चलते न सिर्फ यातायात बाधित होता है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
सार्वजनिक सुविधाएं नदारद
लाडवा के मुख्य चौराहे पर न तो शौचालय हैं, न ही पीने के पानी की व्यवस्था। वहीं नगर की सफाई व्यवस्था इतनी बदहाल है कि लाडवा को हरियाणा के सबसे गंदे शहरों में गिना जाने लगा है।
"स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का हो रहा अपमान"
नागरिकों ने कहा कि भगत सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने जिस स्वच्छ, पारदर्शी और जवाबदेह तंत्र का सपना देखा था, लाडवा की वर्तमान स्थिति उसके ठीक विपरीत है। जनता ने मीडिया से अपील की है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में वे इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाएं ताकि लाडवा को उसका हक़ मिल सके।