पितृत्व से वंचित: देश में सिर्फ 25% पिताओं को ही अदालत से बच्चों से मिलने का अधिकार

नई दिल्ली: एकम न्याय फाउंडेशन के एक सर्वे ने खुलासा किया है कि विवाह संबंधी विवादों में फंसे केवल 25 प्रतिशत पिता को ही अदालतें अपने बच्चों से मिलने का अधिकार देती हैं।
इस सर्वे को देशभर में किया गया । 2 महीनों तक चले इस सर्वें में खासकर मेट्रो और टियर-2 शहरों से, बड़ी संख्या में पिता शामिल हुए। इस अध्ययन का उद्देश्य पैरेंटल एलियनेशन यानी एक माता-पिता द्वारा बच्चे को दूसरे माता-पिता से दूर करने के मुद्दे को समझना और इसके बच्चों व पिताओं पर पड़ने वाले भावनात्मक व कानूनी असर को उजागर करना था।
मुख्य निष्कर्ष
88 प्रतिशत प्रतिभागी 15 साल या उससे कम समय से विवाहित थे, यानी विवाद ज्यादातर शुरुआती पैरेंटिंग वर्षों में होते हैं।
78 प्रतिशत प्रभावित बच्चे 10 साल से कम उम्र के हैं – यह उनकी सबसे संवेदनशील उम्र है।
61 प्रतिशत पिता 5 साल से कम समय से बच्चों से अलग हैं, जबकि 16.7 प्रतिशत पिता 5–10 साल से अलग रहे।
केवल 25 प्रतिशत पिताओं को ही अदालत ने बच्चों से मिलने का अधिकार दिया, और आदेश मिलने के बाद भी कई मामलों में पालन नहीं हुआ।
एकम न्याय फाउंडेशन ने अपने अध्ययन में यह भी पाया गया कि पिताओं को झूठे केस, लंबी कानूनी लड़ाइयों, और कस्टडी में पक्षपात*का सामना करना पड़ता है।
एकम न्याय फाउंडेशन ने कहा कि हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट की धारा 6 के तहत 5 साल से कम उम्र के बच्चों की कस्टडी का प्रावधान ज्यादातर मां के पक्ष में जाता है, जिससे पिताओं के अधिकार सीमित हो जाते हैं।
फाउंडेशन की निदेशक दीपिका नारायण भारद्वाज ने कहा, "अतुल सुभाष की आत्महत्या ने इस दर्द को उजागर किया कि कैसे भारत में पिता अपने बच्चों से अलग होने की वजह से टूट रहे हैं। अदालतें ज्यादातर कस्टडी मां को देती हैं, जिससे लाखों पिता अपने बच्चों के प्यार से वंचित रह जाते हैं। हमारा शोध बताता है कि कितनी मुश्किल से और बार-बार अदालत का दरवाज़ा खटखटाने के बाद भी सिर्फ 25% पिता अपने बच्चों से मिल पाते हैं। न्याय के लिए अब साझा पैरेंटिंग अपनानी होगी।"
फाउडेशन ने सरकार और न्यायपालिका से अपील की है कि साझा पैरेंटिंग (Shared Parenting)*को कानून में शामिल किया जाए, ताकि बच्चों को दोनों माता-पिता का प्यार और देखभाल मिल सके।