धर्मगुरु गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में शांति का अधिकार सम्मेलन का आयोजन

नई दिल्ली, 25 अगस्त: दिल्ली के लोधी रोड स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एक ऐतिहासिक आयोजन हुआ, जिसने न केवल भारत के पुनर्निर्माण के मार्ग को उजागर किया, बल्कि सिख और मुस्लिम समुदायों के बीच भाईचारे की एक नई मिसाल भी कायम की।
सिख समुदाय के धर्मगुरु गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में शांति का अधिकार सम्मेलन का आयोजन इंडियन मुस्लिम फॉर सिविल राइट्स (आईएमसीआर), अखिल भारतीय पीस मिशन नई दिल्ली और केंद्रीय सिंह सभा पंजाब के संयुक्त प्रयासों और इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के सहयोग से किया गया।
इस अवसर पर अकाल तख्त, अखिल भारतीय पीस मिशन, गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, केंद्रीय सिंह सभा, गुरु नानक फाउंडेशन, हरियाणा सिख गुरुद्वारा समिति और राजस्थान सिख सभा के नेताओं, प्रमुख राष्ट्रीय और धार्मिक नेताओं और प्रमुख मुस्लिम हस्तियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों सहित देश भर से सैकड़ों प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किए।
सिख और मुस्लिम समुदायों के बीच भाईचारे की एक नई मिसाल
अखिल भारतीय शांति मिशन के अध्यक्ष सरदार दया सिंह ने कहा कि सिख पंथ से पहले हिंदू धर्म दो भागों में विभाजित था, एक भाग शासक वर्ग कहलाता था जबकि दूसरा पीड़ित और शोषित वर्ग माना जाता था। इसी भेद को मिटाने के लिए सिख पंथ की स्थापना की गई थी। सरदार दया सिंह ने कहा कि मुगल राजाओं के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करना और उन्हें क्रूर कहना कतई उचित नहीं है। यह निश्चित है कि मुगल राजाओं और सिख धर्मगुरुओं के साथ मधुर और सौहार्दपूर्ण संबंध थे, लेकिन मुगलों के इतिहास को मिटाना उचित नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि आज का भारत दो भागों में विभाजित है। एक भाग नानकवादी यानी गांधी वादी है। जबकि दूसरा भाग आरएसएस वादी विचार धारा से प्रेरित है। अब देखना यह है कि कौन किसके साथ खड़ा होता है।
मतभेद भुलाकर एक साथ आगे बढ़ें।
इंडियन मुस्लिम फॉर सिविल राइट्स के अध्यक्ष और पूर्व सांसद मुहम्मद अदीब ने अपने भाषण में मुस्लिम समुदाय को याद दिलाया कि मुसीबत के समय दूसरों की मदद करने की जो ज़िम्मेदारी उनकी थी, उसे आज सिख समुदाय बखूबी निभा रहा है। अपने भाषण में उन्होंने 1984 के दंगों का ज़िक्र किया और कहा कि जब सिख संकट में थे, तब मुसलमान चुप रहे। इसी तरह, 2002 के गुजरात दंगों के दौरान सिख भी चुप रहा। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने मतभेद भुलाकर एक साथ आगे बढ़ें। मुहम्मद अदीब ने बेहद भावुक अंदाज़ में कहा कि मैं देश के मौजूदा हालात से आज बहुत निराश था, लेकिन सिख भाइयों के उत्साहपूर्ण समर्थन ने निराशा को दूर कर हममें और जीने की नई चाह पैदा कर दी है।
जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने अपने भाषण में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर खेद व्यक्त किया और कहा कि यह बहुत दुख और अफ़सोस की बात है कि जम्मू-कश्मीर का स्टेट हुड का दर्जा अब तक बहाल नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि आज बयानबाज़ी की नहीं, बल्कि गंभीर प्रयासों और कार्रवाई की ज़रूरत है।
इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने सिख-मुस्लिम एकता कार्यक्रम के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि इस्लामिक सेंटर में इस तरह का कार्यक्रम आयोजित करना हमारे लिए गर्व की बात है और हम विश्वास दिलाते हैं कि भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन में सेंटर पूरा सहयोग देता रहेगा।
सिख-मुस्लिम एकता आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत
सभी वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सिख-मुस्लिम एकता आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है। उन्होंने देश भर में ऐसे और ज़्यादा समागम आयोजित करने पर ज़ोर दिया। इतिहास को याद करते हुए, सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि हमें देश को मज़बूत बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और संविधान में दिए गए अधिकारों को हासिल करने के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए। सम्मेलन में दो सत्र हुए। पहले सत्र की अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने की और संचालन पत्रकार अंज़रूल बारी ने किया। दूसरे और अंतिम सत्र की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने की और संचालन आई.एम.सी.आर. के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. आज़म बेग ने किया। कार्यक्रम के अंत में एक प्रस्ताव भी पढ़ा गया। प्रस्ताव के अनुसार, सिख धर्म के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस को सिख-मुस्लिम एकजुटता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। गुरु तेग बहादुर जी के पदचिन्हों पर चलते हुए, एक समूह के रूप में अकाल तख्त से संपर्क कर फ़िलिस्तीन और गाज़ा के लोगों की मदद करने और फिर भारत सरकार पर दबाव बनाने का आग्रह किया गया। प्रस्ताव के अनुसार, सिख-मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ विभिन्न अन्य वर्गों को भी इस मिशन का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
बैठक में कांग्रेस नेता गुरदीप सिंह सपल, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी, जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी, पंजाब महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष बीबी परमजीत कौर, राजस्थान सरकार की पूर्व मंत्री बीबी शकुंतला रावत, समाजवादी पार्टी के नेता और रामपुर से सांसद मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी, धार्मिक जन मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक प्रोफेसर मुहम्मद सलीम इंजीनियर, संयुक्त राष्ट्र मिशन से जुड़े रविंदर पाल सिंह, अधिवक्ता संगठन 'समला' के महासचिव एडवोकेट फिरोज अहमद गाजी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ. ममदोहा मजीद, सेंट्रल सिंह सभा के अध्यक्ष प्रोफेसर श्याम सिंह, समाजवादी पार्टी के नेता शेख सलाहुद्दीन और पूर्व नौसेना अधिकारी घुम्मन सिंह शामिल हुए, जिन्होंने कार्यक्रम में भाग नहीं लिया, लेकिन उपस्थित लोगों को संबोधित किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य व्यक्ति, महिलाएं और सिख समुदाय के लोग उपस्थित थे।
बैठक के अंत में, आई.एम.सी.आर.के. राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद मुहम्मद अदीब ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया और इस तरह के समारोहों के आयोजन को समय की आवश्यकता बताया।