सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अलग-अलग देशों में रहने वाले माता-पिता से भी बच्चे का संबंध बनाए रखना जरूरी

नई दिल्ली, 4 सितंबर।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि चाहे माता-पिता अलग-अलग देशों में क्यों न रहते हों, बच्चे के लिए दोनों से रिश्ते बनाए रखना जरूरी है। अदालत ने हरियाणा के एक पिता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बेटे से बात करने का अधिकार दिया है। यह मामला मनोज धनखड़ बनाम निहारिका से जुड़ा है, जिसमें 9 साल का बच्चा फिलहाल अपनी मां के साथ आयरलैंड में रह रहा है।
मामले की पृष्ठभूमि
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मनोज धनखड़ और निहारिका की शादी 26 नवंबर 2012 को हुई थी।
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उनका बेटा 18 जनवरी 2016 को पैदा हुआ।
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2017 में मां बच्चे को लेकर मायके चली गईं और बाद में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13(1)(ia) और (ib) के तहत तलाक की अर्जी दाखिल की।
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पिता ने 2018 में कस्टडी (हिरासत) का केस दायर किया।
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2019 में फैमिली कोर्ट ने पिता को महीने में दो बार स्कूल में बेटे से मिलने की अनुमति दी।
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बाद में दोनों ने आपसी सहमति से तलाक और कस्टडी समझौते की कोशिश की, लेकिन यह समझौता टूट गया।
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फरवरी 2022 में फैमिली कोर्ट ने पिता को हर शनिवार और रविवार बच्चे की कस्टडी दी, इस शर्त पर कि बच्चा रोहतक से बाहर नहीं ले जाया जाएगा।
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पिता पर शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगा और 2023 में फैमिली कोर्ट ने कस्टडी याचिका खारिज कर दी, जिसे पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट में पिता ने अब केवल वीडियो कॉल के जरिए बेटे से बात करने की इजाजत मांगी। अदालत ने साफ कहा कि यह मामला माता-पिता के अधिकारों का नहीं, बल्कि बच्चे की भलाई का है।
"सवाल यह नहीं है कि माता-पिता में कौन सही है या कौन गलत, बल्कि यह है कि कौन सा इंतजाम बच्चे के हित में है। बच्चे के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए," सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
अदालत ने यह भी कहा कि माता-पिता के बीच चल रही कड़वाहट का असर बच्चे पर नहीं पड़ना चाहिए।
"माता-पिता का विवाद चाहे जितना गहरा हो, अदालत बच्चे को इस संघर्ष का शिकार नहीं बनने दे सकती," बेंच ने टिप्पणी की।
बच्चे और पिता के बीच वर्चुअल मुलाकात
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बच्चा फिलहाल आयरलैंड में अपनी मां के साथ स्थिर जीवन जी रहा है, ऐसे में उसकी कस्टडी बदलना उसके हित में नहीं होगा।
हालांकि, अदालत ने पिता को वीडियो कॉल के जरिए बेटे से मिलने का अधिकार देते हुए कहा—
"हर बच्चे का हक है कि वह दोनों माता-पिता का स्नेह पाए। चाहे माता-पिता अलग-अलग रहते हों या अलग देशों में हों, बच्चे को दोनों से जुड़ाव बनाए रखने का अवसर मिलना चाहिए।"
अदालत के आदेश
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पिता हर दूसरे रविवार को बेटे से 2 घंटे तक वीडियो कॉल पर बात कर सकेंगे।
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मां और पिता दोनों को सहयोग करने का निर्देश दिया गया है ताकि यह व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके।
इस फैसले के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने साफ संदेश दिया है कि बच्चों के अधिकार और भावनात्मक जरूरतें माता-पिता के झगड़ों से कहीं ऊपर हैं, और बच्चे को दोनों माता-पिता के प्यार और मार्गदर्शन से वंचित नहीं किया जा सकता।