Delhi High Court: बार-बार की समन प्रक्रिया को उत्पीड़न नहीं बनने दिया जा सकता .जब कोई व्यक्ति जांच में पूरा सहयोग कर रहा हो

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति को बार-बार लंबी दूरी तय कर जांच में शामिल होने के लिए बुलाना, जबकि वह पूरी तरह से सहयोग कर रहा हो, उत्पीड़न और प्रक्रिया के दुरुपयोग (abuse of process) के समान है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता मि. अग्रवाल को आगे की जांच में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होने की अनुमति दी है।
यह मामला Tripaksha Litigation के एडवोकेट रत्तनदीप सिंह, एडवोकेट दिव्या त्रिपाठी और एडवोकेट प्रीथा खन्ना द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत किया गया।
पेटिशनर की दलीलें
एडवोकेट रत्तनदीप सिंह ने अदालत में तर्क दिया कि उनका मुवक्किल पहले ही तीन बार कोलकाता से दिल्ली यात्रा कर व्यक्तिगत रूप से जांच में शामिल हो चुका है और उसका बयान रिकॉर्ड किया गया है।
उन्होंने कहा, "मेरे मुवक्किल ने हर दिशा-निर्देश का पालन किया है और पूरी तरह सहयोग किया है। बार-बार यात्रा के लिए मजबूर करना केवल उत्पीड़न है। इस डिजिटल युग में आगे की जांच आसानी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की जा सकती है।"सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका मुवक्किल पूरी तरह से सहयोग करने के लिए तैयार है, लेकिन यह वर्चुअली किया जाना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
जस्टिस अरुण मोंगा ने याचिका निपटाते हुए कहा, "चूंकि याचिकाकर्ता पहले ही तीन बार व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर बयान दर्ज करवा चुका है, इसलिए उसे आगे की जांच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से करने की अनुमति दी जाती है।"हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश जांच अधिकारी (IO) की शक्तियों में किसी भी तरह से बाधा नहीं डालेगा।
महत्वपूर्ण संदेश
इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि बार-बार की समन प्रक्रिया को उत्पीड़न नहीं बनने दिया जा सकता, खासकर जब कोई व्यक्ति जांच में पूरा सहयोग कर रहा हो।यह निर्णय इस बात का भी उदाहरण है कि तकनीक के उपयोग से न्यायिक और जांच प्रक्रियाएं अधिक कुशल और मानवीय हो सकती हैं, जिसमें अनावश्यक शारीरिक उपस्थिति की बाध्यता को समाप्त किया जा सकता है।