राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन

1 October, 2025, 11:15 pm

 

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (1 अक्टूबर 2025) को डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने संघ के संस्थापक परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि “एक सदी पहले संघ की स्थापना कोई संयोग नहीं थी, यह भारत की शाश्वत राष्ट्रीय चेतना का नया स्वरूप था।”

कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने विशेष स्मारक डाक टिकट और ₹100 का स्मारक सिक्का जारी किया। इस सिक्के पर पहली बार स्वतंत्र भारत की मुद्रा में भारत माता की प्रतिमा अंकित की गई है, जिसमें भारत माता ‘वरद मुद्रा’ में शेर के साथ दिख रही हैं और स्वयंसेवक उन्हें सलामी दे रहे हैं। सिक्के पर संघ का मूल मंत्र “राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम” भी अंकित है।

प्रधानमंत्री मोदी के मुख्य बिंदु

  • संघ की स्थापना: संघ की नींव राष्ट्रनिर्माण, व्यक्ति निर्माण और शाखा की अनुशासित परंपरा पर रखी गई।

  • शाखा का महत्व: शाखा वह प्रेरणास्थल है जहाँ से ‘मैं’ से ‘हम’ की यात्रा शुरू होती है।

  • सेवा और त्याग: हर स्वयंसेवक का आदर्श है—दूसरों के कष्ट दूर करने के लिए खुद कठिनाई सहना।

  • इतिहास का योगदान:

    • 1962 युद्ध, 1971 शरणार्थी संकट, 1984 दंगों से लेकर कोविड-19 महामारी तक, स्वयंसेवक हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे।

    • 1942 आंदोलन, हैदराबाद मुक्ति, गोवा और दादरा-नगर हवेली के संघर्षों में संघ का सक्रिय योगदान रहा।

  • सामाजिक समरसता: गांधीजी ने स्वयं संघ के शिविर में आकर इसकी समानता और करुणा की भावना की प्रशंसा की थी।

  • सामाजिक सुधार: गुरुजी गोलवलकर और अन्य सरसंघचालकों ने हमेशा अस्पृश्यता और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने ‘एक कुआँ, एक मंदिर, एक श्मशान’ का आह्वान किया।

  • जनजातीय उत्थान: संघ ने दशकों से देश के लगभग 10 करोड़ आदिवासी भाइयों-बहनों के बीच शिक्षा, संस्कृति और सेवा कार्य किए।

पंच परिवर्तन – राष्ट्रनिर्माण का संकल्प

प्रधानमंत्री ने संघ के पांच परिवर्तनकारी संकल्पों का उल्लेख किया और कहा कि ये भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की शक्ति देंगे—

  1. स्व-जागरूकता (Self Awareness) – गुलामी की मानसिकता से मुक्ति, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता।

  2. सामाजिक समरसता (Social Harmony) – जाति, भाषा और क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता।

  3. परिवार प्रबोधन (Family Enlightenment) – पारिवारिक मूल्यों, महिला सशक्तिकरण और युवाओं में संस्कार।

  4. नागरिक अनुशासन (Civic Discipline) – स्वच्छता, कर्तव्यपालन और संवैधानिक दायित्व।

  5. पर्यावरण चेतना (Environmental Consciousness) – जल संरक्षण, हरित ऊर्जा और प्रकृति संरक्षण।

संघ का स्वरूप

प्रधानमंत्री ने कहा—

  • “संघ एक महान वटवृक्ष की तरह है, जिसने कठिनाइयों और षड्यंत्रों के बावजूद समाज की सेवा में निरंतर कार्य किया है।”

  • “संघ की प्रेरणा ही है ‘राष्ट्र प्रथम, एक भारत-श्रेष्ठ भारत’।“

  • “संघ की साधना सेवा, त्याग, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है।”

कार्यक्रम में उपस्थिति

इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, और संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले सहित अनेक गणमान्य उपस्थित रहे।

पृष्ठभूमि

  • संघ की स्थापना: 1925 में नागपुर में डॉ. हेडगेवार द्वारा।

  • उद्देश्य: राष्ट्रभक्ति, सेवा, अनुशासन और समाजनिर्माण।

  • योगदान: शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण और आपदा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका।

  • विशेषता: यह एक जनपोषित आंदोलन है, जिसने भारत की सांस्कृतिक चेतना को मजबूत किया।

 यह आयोजन केवल संघ की 100 वर्ष की उपलब्धियों का सम्मान नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक यात्रा, सेवा और राष्ट्रीय एकता के संदेश को भी रेखांकित करता है।