कलाकार वैभव तानाजी सांगळे अगर जिद और जुनून हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।

(Broadcast Mantra रिपोर्ट — नई दिल्ली)
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर — जन्मजात कर्णबधिरता पर अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से विजय पाने वाले और चित्रकला के माध्यम से महाराष्ट्र का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन करने वाले कलाकार वैभव तानाजी सांगळे इन दिनों नई दिल्ली के जनपथ स्थित हैंडलूम हाट में चल रहे ‘स्पेशल एक्सपो: सूत्रों का सफर (The Journey of Threads)*’ में अपनी कलाकृतियों के साथ आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस सात दिवसीय प्रदर्शनी में देशभर के 75 बुनकरों, स्वयं सहायता समूहों और सहकारी संस्थाओं ने भाग लिया है। पारंपरिक वस्त्र और हस्तकला को प्रोत्साहन देने वाले इस आयोजन में वैभव सांगळे के चित्रों में दिखने वाली भावनात्मक गहराई और प्रवाही अभिव्यक्ति ने दर्शकों का मन मोह लिया है।
संघर्ष से साधना तक का सफर
जन्म से कर्णबधिर रहे वैभव सांगळे का यह सफर किसी प्रेरक दास्तान से कम नहीं। उनके माता-पिता ने अथक प्रयासों से उनकी श्रवण क्षमता 70% तक बहाल कराई। पिता ने बचपन में ही उनके हाथों में ब्रश थमाया, और वहीं से शुरू हुई रंगों की दुनिया ने उन्हें एक नई पहचान दी। उन्होंने न केवल दसवीं और बारहवीं में प्रथम स्थान प्राप्त किया, बल्कि सीईटी में दिव्यांग श्रेणी से शीर्ष स्थान लेकर मुंबई के *सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स* में प्रवेश पाया।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय कला का मान
वैभव सांगळे की कलाकृतियों ने भारत की सीमाएं पार करते हुए इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, रूस और फ्रांस तक अपनी छाप छोड़ी है। मुंबई स्थित *अमेरिकी दूतावास* में उनके चित्रों की प्रदर्शनी आयोजित की जा चुकी है। साथ ही, केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय की ‘दिव्य कला प्रदर्शनी’ और ‘दिव्य कला मेले’ में उनके चित्र कई शहरों — दिल्ली, मुंबई, गोवा, भोपाल, गुवाहाटी — में प्रदर्शित हुए, जहाँ मुंबई में उन्हें “*बेस्ट डिस्प्ले अवॉर्ड*” से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रपति भवन में दोहरी उपलब्धि
साल 2023 में उन्हें महामहिम *राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू* के हाथों ‘*राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग जन पुरस्कार*’ से सम्मानित किया गया। यही नहीं, राष्ट्रपति भवन में उनके चित्रों की तीन दिवसीय प्रदर्शनी भी आयोजित हुई और स्वयं राष्ट्रपति महोदय के लिए बनाए उनके विशेष पेंटिंग को राष्ट्रपति भवन की दीवार पर स्थान मिला — यह सम्मान बहुत कम कलाकारों को प्राप्त है।
सामाजिक समर्पण
कलासक्त योद्धा’ कहे जाने वाले वैभव सांगळे समाज सेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। वे कर्णबधिर बच्चों, अनाथ आश्रमों के बच्चों और ग्रामीण महिलाओं को *वारली पेंटिंग सहित पारंपरिक कला का निशुल्क प्रशिक्षण देते हैं। उनका मानना है
“कला सिर्फ आत्म-अभिव्यक्ति नहीं, समाज के प्रति उत्तरदायित्व भी है।”
नई दिल्ली के इस ‘स्पेशल एक्सपो’ में वैभव सांगळे की रचनाएँ न केवल उनकी कला-साधना की गहराई दर्शाती हैं, बल्कि यह संदेश भी देती हैं कि *अगर जिद और जुनून हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।*




