“न्यायप्रिय होना महिलाओं के खिलाफ होना नहीं है पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू.यू. ललित,

नई दिल्ली, 16 नवंबर 2025
संविधान क्लब ऑफ इंडिया का ऐतिहासिक मावलंकर हॉल शनिवार को उस समय सच्चे अर्थों में न्याय की आवाज़ से गूंज उठा, जब Ekam Nyaay Foundation ने अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस (19 नवंबर) के उपलक्ष्य में अपना प्रमुख आयोजन ‘Ekam Nyaay Conference – Shaping an Equal & Just Bharat’ आयोजित किया।
इस सम्मेलन का उद्देश्य था— पुरुषों से जुड़े उन सामाजिक, मानसिक, कानूनी और संस्थागत संकटों पर खुलकर बात करना, जिन पर भारत में आज भी चर्चा को हतोत्साहित किया जाता है।
न्यायमूर्ति यू.यू. ललित का स्पष्ट संदेश
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने कहा कि—
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कानूनों का उद्देश्य न्याय है, न कि किसी निर्दोष व्यक्ति को दंडित करना।
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वर्षों तक चले सहमति वाले रिश्तों में, टूटने के बाद लगाए जाने वाले झूठे विवाह-प्रलोभन आधारित बलात्कार के मामलों में पुलिस को बिना जांच गिरफ्तारी से बचना चाहिए।
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“हम एंटी-वुमन नहीं, प्रो-जस्टिस हैं,” उन्होंने दीपिका नारायण भारद्वाज के कथन को दोहराते हुए कहा।
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“समाज में जहां सीता हैं, वहीं शूर्पणखा भी हैं”— इसलिए कानून का संतुलन आवश्यक है।
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यदि किसी महिला की शिकायत ‘गॉस्पेल’ की तरह स्वीकार होती है, तो झूठी शिकायत पर दोषी को उसी प्रक्रिया में दंडित करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
उन्होंने पुलिस तंत्र की कमियों पर भी गंभीर टिप्पणी की—
“कन्विक्शन रेट 20% से आगे नहीं बढ़ता… चार में से पांच अंडरट्रायल बरी हो जाते हैं… क्या हम निर्दोषों को प्रणाली की बलि नहीं चढ़ा रहे?”
वार्षिक रिपोर्ट का विमोचन
न्यायमूर्ति ललित और बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति साधना जाधव ने Ekam Nyaay Foundation की वार्षिक रिपोर्ट जारी की।
संस्थापक दीपिका नारायण भारद्वाज ने बताया:
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2000+ पुरुषों को काउंसलिंग
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37 अपराधियों/झूठे आरोप लगाने वालों की गिरफ्तारी सक्षम की
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24 मामलों में पीड़ित परिवारों की FIR दर्ज कराई
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3 बड़ी रिसर्च रिपोर्ट
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123+ आर्टिकल्स
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700M+ व्यूज़ सोशल मीडिया पर
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हर दिन टूट चुके परिवारों को थामने का प्रयास
न्यायमूर्ति साधना जाधव का सवाल — “झूठा आरोप क्यों नहीं लग सकता?”
अपने प्रभावशाली संबोधन में उन्होंने कहा—
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समाज यह मानकर चलता है कि “महिला खुद को क्यों बदनाम करेगी?”
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लेकिन वास्तविकता में झूठे आरोप भी संभव हैं और बढ़ रहे हैं।
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“एक पुरुष पर आरोप लगता है तो सिर्फ वही नहीं, उसका पूरा परिवार बिखर जाता है।”
उन्होंने Ekam Nyaay के कार्य को “देश के लिए आवश्यक जागरण” बताया।
कानून, मानसिक स्वास्थ्य, आत्महत्या, पैरेंटल एलियनेशन— गहन चर्चा
सम्मेलन में वकीलों, मनोवैज्ञानिकों, पत्रकारों, फिल्म निर्माताओं और एक्टिविस्टों ने पुरुषों से जुड़े इन गंभीर मुद्दों पर बात की:
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बलात्कार कानूनों का दुरुपयोग
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सहमति आधारित रिश्तों में आपराधिक मुकदमे
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पुरुषों में बढ़ती आत्महत्या
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तलाक व कस्टडी मामलों में पैरेंटल एलियनेशन
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भारत में प्रीनप एग्रीमेंट की आवश्यकता
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पुरुष पीड़ित पर समाज का उपहास और मौन
UP के पूर्व अतिरिक्त निदेशक अभियोजन सत्य प्रकाश राय की लाइन ने पूरा हाल थमा दिया—
“Victims ka koi gang nahi hota.”
सम्मेलन का निष्कर्ष — “पुरुषों के मुद्दे, इंसानों के मुद्दे हैं”
दिनभर की चर्चाओं के बाद यह संदेश साफ था कि—
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न्याय लिंग-निरपेक्ष होना चाहिए।
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पुरुषों की पीड़ा को स्वीकार करना महिलाओं के अधिकारों का विरोध नहीं है।
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भारत को ऐसी न्याय व्यवस्था चाहिए जिसमें न निर्दोष फँसे, न दोषी बचे।
Ekam Nyaay Conference 2025 सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि एक नए विमर्श की शुरुआत साबित हुआ—
एक ऐसे भारत के लिए, जहां हर आवाज़—चाहे पुरुष हो या महिला—समान सम्मान और न्याय पाए।




